Uttarkashi Earthquake: छोटे-छोटे भूकंप किसी बड़े खतरे का संकेत, धरती के भीतर बढ़ती गतिविधियों ने बढ़ाई चिंता

उत्तरकाशी में आ रहे छोटे-छोटे भूकंप किसी बड़े खतरे का संकेत हो सकते हैं। कई सालों से बड़ा भूकंप नहीं आने से हिमालय के भूगर्भ में ऊर्जा एकत्रित हो रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार भूकंप तीव्रता की एक मात्रा बढ़ने के बाद धरती से निकलने वाली एनर्जी 30 गुना बढ़ जाती है, जबकि इसमें एक अंक तीव्रता और बढ़ा दी जाए तो यही एनर्जी 900 गुना हो जाती है।

ऐसे में छोटे भूकंप आने से बड़े भूकंप का खतरा टल जाने का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। उत्तरकाशी में पिछले एक सप्ताह से रुक-रुककर आ रहे भूकंप के झटके लोगाें में दहशत का कारण बन रहे हैं। लेकिन इन छोटे झटकों का संबंध किसी बड़े खतरे से है या नहीं, इस पर अब तक किसी भी वैज्ञानिक अध्ययन में कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। हालांकि वैज्ञानिक इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि उत्तराखंड में लंबे समय से बड़ा भूकंप नहीं आया है। ऐसे में छोटे भूकंप भी बड़े खतरे का संकेत हो सकते हैं।
आईआईटी रुड़की के भूकंप अभियांत्रिकी विभाग के वैज्ञानिक डॉ. योगेंद्र सिंह का कहना है कि छोटे भूकंप से बड़े भूकंप के आने या न आने के बारे में स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि छोटे भूकंप से धरती के नीचे इकट्ठा एनर्जी बड़ी मात्रा में बाहर नहीं निकल पाती है। इस वजह से यह कहना भी मुश्किल है कि बड़े भूंकप नहीं आ सकते। उन्होंने बताया कि भूकंप का मैग्नीट्यूड का एक अंक बढ़ने से पहले के मुकाबले 30 गुना ज्यादा ऊर्जा बाहर निकलती है।

भूकंप की तीव्रता 6 से अधिक हो तो विनाश

जैसे-जैसे मैग्नीट्यूड का अंक बढ़ता जाता है, उसी अनुपात में धरती से निकलने की ऊर्जा की मात्रा बढ़ती जाती है। प्रो. सिंह का कहना है कि धरती के नीचे हो रही भूगर्भीय हलचल में भूकंप का आना तब तक एक सामान्य प्राकृतिक घटना की ही तरह है, जब तक कि उससे जानमाल की कोई हानि न हो। जब भूकंप की तीव्रता 6 से अधिक हो जाती है तो यह विनाश करने लगता है। वहीं दूसरी ओर, उत्तराखंड में 1991 में उत्तरकाशी में 6.6 तीव्रता के भूकंप के बाद कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है। हालांकि खरसाली में 2007 में भूकंप की तीव्रता 5 थी। ऐसे में वैज्ञानिक सेस्मिक गैप के तौर पर भी बड़े भूकंप की आशंका जता रहे हैं।

धरती के भीतर बढ़ती गतिविधियां चिंता का कारण

वाडिया इंस्टीट्यूट देहरादून के वैज्ञानिक डाॅ. नरेश कुमार का कहना है कि भले ही छोटे भूकंप का बड़े भूकंप से संबंध न हो लेकिन इस तरह छोटी गतिविधि भी चिंता का कारण है। ऐसे में आपदा पूर्व के कदम उठाए जाने जरूरी हैंं। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में लंबे समय से बड़ा भूकंप नहीं आया है, जोन पांच में आने वाले हिमालयी राज्य में सेस्मिक गैप के कारण के भी सावधानी बरते जाने की जरूरत है।

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